Saturday, June 6, 2020

यौन शिक्षा (Sex education)

हमारे यहाँ Sex education का अभाव है लोगों को इसके विषय में पूर्ण जानकारी नहीं है। क्यों ना कुछ यौन शिक्षा के विषय में कुछ जाना समझा या बताया जाये? 

यौन शिक्षा के विषय में बात करने से पूर्व कुछ बिन्दु निर्धारित करते हैं कि - 

1) यौन शिक्षा क्या है ?

 2) यौन शिक्षा के उद्देश्य ?

3) यौन शिक्षा कब दी जाये?

4) यौन शिक्षा की आवश्यकता क्यों है?

5) यौन शिक्षा की पद्धति क्या होनी चाहिए ?

6) यौन शिक्षा का पाठ्यक्रम क्या हो?

7) यौन शिक्षा कौन दे (यह सबसे महत्वपूर्ण बिन्दु है)?


यौन शिक्षा क्या है - किशोरों को उनके प्रजनन अंगों के विषय में सम्पूर्ण जानकारी प्रदान कराना यौन शिक्षा कहलाता है।

यौन शिक्षा का तात्पर्य युवक-युवतियों में अपने शरीर के प्रति ज्ञान का नया आयाम विकसित करने से है। यौन शिक्षा का अर्थ केवल शारीरिक संसर्ग से ही सम्बंधित  नहीं है बल्कि यौन शिक्षा के माध्यम से हम यौन जनित विभिन्न  जिज्ञासाओं, विभिन्न यौन जनक बीमारियों की जानकारी और उससे बचने के उपायों के प्रति जागरूक होते हैं। अगर सही तरीके से किशोर एवं किशोरियों को सेक्स से सम्बंधित सलाह दी जाय तो यौन रोगों में तथा यौन अपराधों में में भी कमी आ सकती है। यौन सम्बन्धी जिज्ञासाओं के सही समाधान न होने से युवा कहीं न कहीं गलत दिशा में भटक जाते हैं। यौन शिक्षा उन्हें अपने शरीर के प्रति, यौन  संबंधों के प्रति, यौन जनित बीमारियों के प्रति, सुरक्षित यौन संबंधों के प्रति, रिश्तों की गरिमा के प्रति सचेत करती है। 

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार सेक्स एजुकेशन बेहतर समाज के निर्माण में अहम् भूमिका निभा सकती है। इस शिक्षा के माध्यम से एचआईवी/एड्स जैसी भयानक बीमारियों पर भी काबू पाया जा सकता है। सर्वे के अनुसार देश में १२% लड़कियां १५-१९ वर्ष की उम्र में ही माँ बन जाती हैं।

आज नेशनल हेल्थ मिशन के तहत सरकारी अस्पतालों में ARSH (Adolescent Reproductive & sexual health) के केंद्र खोले जा रहे हैं उनका यही काम ही है कि युवाओं को यौन स्वास्थ्य के बारे में बताएं।

यौन - शास्त्र के प्रसिद्ध विद्वान फ्रायड कहते हैं कि छोटे छोटे शिशुओं में भी काम वासना होती है। जिसके कुछ प्रमाण मिलते हैं जो हमें यह मानने पर विवश कर देते हैं कि बच्चों में काम वासना होती है। उदाहरण - बच्चों का अपने एवं दूसरे के यौनांगों को ध्यान से देखना , बच्चों का हाथ प्रायः अपने यौनांगों पर होता है (मुख्यतः ऐसा लड़के शिशु में अधिक देखने को मिलता है)

डी एस एम एन आर यू के समाज कार्य विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. रूपेश कुमार सिंह के अनुसार किशोर एवं किशोरियों की जो उम्र होती है वह जीवन की बहुत ही महत्वपूर्ण अवस्था है। इस समय उनमें यौनाकर्षण होना स्वाभाविक है और उस यौनाकर्षण के बाद उनके दिमाग में  यौन क्रियाओं से सम्बंधित बहुत सारी जिज्ञासाएं होती हैं और उन जिज्ञासाओं को कैसे शांत किया जाय उसके लिए यौन शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण है। दूसरी बात यह है कि बच्चे अपने परिवार में उन प्रश्नों के जवाब ढूढने की कोशिश करते हैं लेकिन जब उनको अपने अभिवावकों से जबाब नहीं मिल पाता है तो उस को जानने के लिए वे कभी-कभी गलत रास्ते पर भी चले जाते हैं। हमारे देश में बड़ी विडम्बना है कि यौनाकर्षण व यौन क्रियाओं से सम्बंधित बात करने के लिए कोई अच्छा साहित्य नहीं उपलब्ध है। बच्चे जिज्ञासा वश कभी-कभी सस्ते और अश्लील साहित्य की ओर आकर्षित हो जाते हैं जिसमें गलत प्रकार की सूचनाएं ही होती हैं।
अतः यौन शिक्षा किशोरों के शारीरिक , मानसिक एवं सामाजिक विकास के लिए आवश्यक है।

 यौन शिक्षा के उद्देश्य ~~• यौन शिक्षा के निम्न उद्देश्य हैं 

 1) यौनांगों की संरचना एवं कार्य से अवगत कराना।

2) यौन सम्बन्धी रोग व उनके उपचारों का ज्ञान देना।

3) प्रजनन क्रिया का महत्व समझाना 

4) विषम-लिंगीय सदस्य के साथ पवित्र पारस्परिक सम्बन्ध स्थापित करने योग्य बनाना।

5) विषम-लिंगीय सदस्यों के प्रति उत्तरदायित्व समझने के लिए परिपक्व बनाना।

6) अनैतिक एवं असामाजिक कार्यों को रोकना।

7) अनैतिक तथा अप्राकृतिक यौन -कार्यों के दुष्परिणामों से अवगत कराना।


यौन शिक्षा कब ? ~: यौन शिक्षा का प्रारंभ प्रारंभिक किशोरावस्था से ही कर देना चाहिए जिससे बालक पूर्ण किशोर होने तक आते-आते यौन के सम्बन्ध में एक स्पष्ट तथा पवित्र धारणा बना सकें । किशोरावस्था में कदम रखने से पूर्व ही जब बच्चा स्कूल जाना प्रारंभ करे तब माता-पिता अपने बच्चों को प्यार से समझाएं कि अगर कोई शख्स उसे गलत तरीके से छूने, गुदगुदाने एवं गले लगाने की कोशिश करे, तो बिल्कुल मना कर दें और इसकी जानकारी अपने घर में माता-पिता या बड़े बुजुर्गों को दें क्योंकि बच्चों को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी माता-पिता एवं परिवार की होती है। अत: एहतियात के लिए उन्हें हमेशा सर्तक रहना जरूरी होता है। माता-पिता के लिए अपना बच्चा सबसे पहले होना चाहिए। अगर उसकी सुरक्षा बरतने में किसी अपने को बुरा भी लगे तो उसकी परवाह न करें। खास कर वर्किंग पैरेंट बच्चे की सुरक्षा को सुनिश्चित करें, तभी उसे घर पर अकेला छोड़ें. किसी भी स्थिति में अपने बच्चे को किसी गैर के साथ सोने के लिए न छोड़ें, न ही देर तक के लिए बाहर जाने दें।

"एक सर्वे में पाया भी गया है कि 54 प्रतिशत वैसे बच्चे यौन शोषण के शिकार होते हैं, जिनका केस तक दर्ज नहीं हो पाता है। माता-पता को इस विषय पर उदार सोच रख कर बच्चों को बचपन से सेक्स संबंधी सही जानकारी दें, ताकि वे खुद अपना बचाव कर सकें।"

उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में आते आते बालक पूर्ण किशोर हो जाता है उस समय बच्चे को सही छूने और गलत छूने एवं गन्दे इशारों की पहचान तो हो जाती है किन्तु अपने शारीरिक विकास के बारे में जानकारी पूरी नहीं होती है। अतः उस समय शारीरिक बदलाव की जानकारी आवश्यक होती है जिसके लिए माता-पिता उन्हें उनके अन्दर होने वाली बदलाव को बतायें एवं उन बदलावों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण को विकसित करें उस समय माँ बाप के साथ साथ शिक्षक की भी मौलिक ड्यूटी बनती है कि उन्हें उस बदलाव के लिए मानसिक रुप से तैयार करें और उचित मनोवृत्ति का निर्माण करें ।

यौन शिक्षा की आवश्यकता ~: यौन शिक्षा की आवश्यकता मानसिक स्वास्थ्य एवं सकारात्मक दृष्टिकोण के लिए आवश्यक है क्योंकि यौन -सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति ना होने के भयंकर परिणाम होते हैं। उस समय मस्तिष्क में समस्या बनी रहती है जिसके कारण मन व्याकुल तथा बेचैन रहता है। कालांतर में ये समस्याएँ भाव-ग्रन्थियाँ पैदा कर व्यक्तित्व को कुसमायोजित कर देती हैं तथा बालक अपराध करने लगता है। भारतीय विद्यालयों में यौन -सम्बन्धी बालापराधों के कुछ निम्न रूप देखने को मिलते हैं -

1) Masturbation (हस्तमैथुन)
2) Obsence Magazines (अश्लील पत्रिकाएं )
3) Homosexuality (समलैंगिकता )
4) Pushing and Crushing (धक्का और दबाना)
5) Sex Talks (यौन सम्बन्धी बातचीत)
6) Obsence Notes (अश्लील टिप्पणियां)
7) Nudity(नग्नता)

यौन शिक्षा की व्यवस्था न होने एवं उसके अभाव के कारण समाज में निर्लज्जता का आरविर्भाव हो रहा है तथा कामुकता फैल रही है। ऐसे में कोमल अवस्था वाले किशोर उचित यौन-शिक्षा के अभाव में अनुचित, अवांछित तथा अनैतिक साधनों से अपनी अपरिपक्व कामुकता की प्यास बुझाते हैं। जिससे उनका नैतिक,  चारित्रिक, आर्थिक तथा शारीरिक पतन होता है।

 यौन-शिक्षा पद्धति ~: यह शिक्षा प्रदान करना बड़ा ही नाजुक कार्य है। जिसमें शिक्षक की थोड़ी सी गलती के भयानक परिणाम हो सकते हैं। अतः यह शिक्षा बहुत सावधानी के साथ देनी चाहिए। यौन शिक्षा देते समय शिक्षक यह सोच कर शिक्षा दे कि काम कोई अश्लील चीज नहीं है। सामान्य विषयों की तरह यौन शिक्षा भी प्रदान करनी चाहिए। यौन शिक्षा प्रदान करते समय यदि शिक्षक हँसता है , संकोच करता है या लज्जा अनुभव करता है तो वह यौन शिक्षा के महान उद्देश्यों को प्राप्त नहीं कर सकता। यौन शिक्षा को हमेशा वास्तविकता के साथ प्रस्तुत करना चाहिए। यौन शिक्षा के अन्तर्गत यौनांगों का शिक्षण वनस्पतिशास्त्र की सहायता से फूल-पौधों के अंगों के माध्यम से कराया जा सकता है। इसी तरह शिक्षक सरल शब्दों में मानव यौनांगों के कार्यों,  मासिक स्त्राव, वीर्य के कार्यों को समझा सकते हैं। यौन शिक्षा के अन्तर्गत ही शिक्षक विभिन्न रोगों के लक्षण, कारण तथा उपचार का ज्ञान करा सकता है। किशोरों को शिक्षक निम्न ( STD: Sexually Transmitter Diseases ) रोगों से अवगत करायें-

इनमें (१) उपदंश (Syphilis), (२) सुजाक(Gonorrhoea), लिंफोग्रेन्युलोमा बेनेरियम (Lyphogranuloma Vanarium) तथा (४) रतिज व्राणाभ (Chancroid), (५) एड्स (AIDS) प्रधान हैं।

आज युवाओं में ही सबसे ज्यादा यौन रोग हो रहे हैं। वर्तमान में अमेरिका के सेंटर फ़ॉर डिसीज़ कंट्रोल Center for Disease Control के अध्ययनों से यह बात खुलकर सामने आयी है कि गोनोरिया Gonorrhea, क्लेमीडिया Chlamydia और सिफ़लिस syphilis के मामलों में लगातार बढ़त देखी जा रही है। आज यौन रोग से अधिकतर 13 से 19 साल की लड़कियाँ ज़्यादा प्रभावित हो रही हैं। आज चार में से एक लड़की यौन से प्रभावित है।

यौन-शिक्षा का पाठ्यक्रम ~: यौन शिक्षा का पाठ्यक्रम क्या अलग-अलग आयु स्तर तथा लड़के व लड़कियों के लिए पृथक-पृथक होनी चाहिए। पूर्व किशोरावस्था में बालकों को वीर्य , वीर्य का महत्व एवं कार्यों और बालिकाओं में उरोज, मासिक स्त्राव आदि के विषय में ज्ञान कराया जा सकता है। सामान्यतः यौन शिक्षण के अन्तर्गत निम्न विषयों का अध्ययन करना चाहिए -

1) यौनांगों की रचना

2) यौनांगों के कार्य 

3) यौनांगों का विकास 

4) स्वस्थ काम-भावनाओं का विकास 

5) यौनांगों से सम्बन्धित रोग,  लक्षण व उपचार 

6) किशोर -किशोरियों में स्वस्थ काम-जीवन व्यतीत करने की क्षमता विकसित करना।


कक्षानुसार हम भारतीय विद्यालयों में निम्न पाठ्यक्रम प्रारंभ कर सकते हैं -

कक्षा 7 में ~: (i) अध्याय शारीरिक ज्ञान (ii) परिवार का ज्ञान (iii) जननेन्द्रियों का सामान्य परिचय 

कक्षा 8 में ~: अध्याय (i) पारिवारिक सम्बन्धों का ज्ञान (ii) जननेन्द्रियों की कार्य प्रणाली (iii) संवेग तथा व्यवहार 

कक्षा 9 में ~: अध्याय (i) मानसिक स्वास्थ्य (ii) संवेगात्मक स्वास्थ्य (iii) स्त्री-पुरुष सम्बन्ध

कक्षा 10 में ~: अध्याय (i) मानसिक विकास (ii) स्त्री-जननेन्द्रियों की संरचना (iii) पुरुष जननेन्द्रियों की संरचना (iv) वृद्धि तथा उत्पादन 

कक्षा 11 में ~: अध्याय (i) परिवार-नियोजन (ii) स्वस्थ काम-सम्बन्ध (iii) किशोर-किशोरी सम्बन्ध

कक्षा 12 में ~: अध्याय (i) पारिवारिक जीवन (ii) सन्तान की देखभाल  (iii) वैवाहिक सम्बन्ध काम-व्यवहार 


यौन-शिक्षा कौन दे?

यौन शिक्षा निश्चित रूप से शिक्षक द्वारा ही प्रदान करनी चाहिए किन्तु यौन शिक्षा माता-पिता द्वारा सम्पादित की जानी चाहिए क्योंकि बालक अधिकांश समय माता-पिता के साथ व्यतीत करता है। यदि माता-पिता स्वयं इस शिक्षा से अनभिज्ञ हो कैसे शिक्षा दे सकते हैं। माता-पिता अपने छोटे बच्चों को अच्छे-बुरे स्पर्श एवं नजरों का ज्ञान अवश्य दें। कुछ लोगों का मानना है कि यौन शिक्षा डॉ द्वारा दी जानी चाहिए क्योंकि उसका यौनांग संरचना एवं कार्यों में विस्तृत अध्ययन होता है। यह बात कुछ हद तक सही है पर पूर्णतः सही नहीं है क्योंकि एक डाॅ को शिक्षा-सिद्धांतों का ज्ञान नहीं होता। ऐसे में यौन शिक्षा को देने का जो उद्देश्य बनना है वह पूरा नहीं होगा क्योंकि ब्लूम टैक्सटोनोमी के अनुसार किसी भी पाठ को पढ़ाते समय अनुदेशन उद्देश्य तीन स्तरों पर बनते है ज्ञानात्मक , भावात्मक एवं क्रियात्मक । इसलिए यह शिक्षा एक निपुण एवं विशेषज्ञ शिक्षक को ही देनी चाहिए यौन शिक्षा प्रदान करने वाले शिक्षक में निम्न गुण होने चाहिए -

1) शिक्षक को यौनांगों का पूर्ण ज्ञान हो।

2) शिक्षक के अध्यापन में अश्लीलता की भावना नहीं होनी चाहिए।

3) उसको विषय-वस्तु को ज्ञानार्जन का माध्यम बनाकर पढ़ाना चाहिए।

4) शरीर रचनाओं का सम्पूर्ण ज्ञान होना चाहिए।

5) यौगिक दृष्टि से शिक्षक स्वयं भी समायोजित होना चाहिए।

6) शिक्षक का स्वयं का नैतिक चरित्र उच्च होना चाहिए।

7) शिक्षक को शिशु पालन एवं रक्षा विधियों का ज्ञान होना चाहिए।

8) शिक्षक को सामान्य एवं विशिष्ट उद्देश्यों को पूरा कराते हुए यौन शिक्षा देनी चाहिए।

3 comments:

  1. Very Nice and useful information about education for sex in this blog . thanks for sharing with us .

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